हमारे मय-कदे में हैं जो कुछ की निय्यतें ज़ाहिर
कब इस ख़ूबी से ऐ ज़ाहिद तिरा बैत-ए-हरम होगा
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हो रूह के तईं जिस्म से किस तरह मोहब्बत
महफ़िल के बीच सुन के मिरे सोज़-ए-दिल का हाल
क़िस्मत में क्या है देखें जीते बचें कि मर जाएँ
दुनिया कि नेक ओ बद से मुझे कुछ ख़बर नहीं
मैं हो के तिरे ग़म से नाशाद बहुत रोया
तू भली बात से ही मेरी ख़फ़ा होता है
तेरी मख़मूर चश्म ऐ मय-नोश
खोता ही नहीं है हवस-ए-मतअम-ओ-मलबस
यार रूठा है मिरा उस को मनाऊँ किस तरह
याँ तलक के है तिरे हिज्र में फ़रियाद कि बस
क़फ़स से छूटने की कब हवस है
है क्या सबब कि यार न आया ख़बर के तईं