मैं हो के तिरे ग़म से नाशाद बहुत रोया
रातों के तईं कर के फ़रियाद बहुत रोया
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कई फ़ाक़ों में ईद आई है
दूँ सारी ख़ुदाई को एवज़ उन के मैं 'ताबाँ'
ग़म में रोता हूँ तिरे सुब्ह कहीं शाम कहीं
है क्या सबब कि यार न आया ख़बर के तईं
क्या करें क्यूँ-कर रहें दुनिया में यारो हम ख़ुशी
आइने को तिरी सूरत से न हो क्यूँ कर हैरत
रिंद वाइज़ से क्यूँ कि सरबर हो
तिरे मिज़्गाँ की फ़ौजें बाँध कर सफ़ जब हुईं ख़ड़ियाँ
तू मिल उस से हो जिस से दिल तिरा ख़ुश
दिलबर से दर्द-ए-दिल न कहूँ हाए कब तलक
यार से अब के गर मिलूँ 'ताबाँ'
तिरी बात लावे जो पैग़ाम-बर