मैं तो तालिब दिल से हूँगा दीन का
दौलत-ए-दुनिया मुझे मतलूब नहीं
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हवा भी इश्क़ की लगने न देता मैं उसे हरगिज़
ये जो हैं अहल-ए-रिया आज फ़क़ीरों के बीच
मैं हो के तिरे ग़म से नाशाद बहुत रोया
तू मिल उस से हो जिस से दिल तिरा ख़ुश
ग़ैर के हाथ में उस शोख़ का दामान है आज
साक़ी हो और चमन हो मीना हो और हम हों
मोहब्बत तू मत कर दिल उस बेवफ़ा से
कई बारी बिना हो जिस की फिर कहते हैं टूटेगा
तू भली बात से ही मेरी ख़फ़ा होता है
ले मेरी ख़बर चश्म मिरे यार की क्यूँ-कर
तिरी बात लावे जो पैग़ाम-बर