रिंद वाइज़ से क्यूँ कि सरबर हो
उस की छू, की किताब और ही है
Gulzar
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Wasi Shah
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(532) Peoples Rate This
हुए हैं जा के आशिक़ अब तो हम उस शोख़ चंचल के
खोता ही नहीं है हवस-ए-मतअम-ओ-मलबस
दर्द-ए-सर है ख़ुमार से मुझ को
कई फ़ाक़ों में ईद आई है
ग़म में रोता हूँ तिरे सुब्ह कहीं शाम कहीं
सफ़र दुनिया से करना क्या है 'ताबाँ'
अज़ीज़ाँ सितमगर न आया मिरे घर
तुम से अब कामयाब और ही है
कई बारी बिना हो जिस की फिर कहते हैं टूटेगा
सुने क्यूँ-कर वो लब्बैक-ए-हरम को
मुझ से बीमार है मिरा ज़ालिम
नहीं तुम मानते मेरा कहा जी