दर्द-ए-सर है ख़ुमार से मुझ को
जल्द ले कर शराब आ साक़ी
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(387) Peoples Rate This
ऐ मर्द-ए-ख़ुदा हो तू परस्तार बुताँ का
रोया न हूँ जहाँ में गरेबाँ को अपने फाड़
क़िस्मत में क्या है देखें जीते बचें कि मर जाएँ
यहाँ यार और बरदार कोई नहीं किसी का
हवा भी इश्क़ की लगने न देता मैं उसे हरगिज़
किस से पूछूँ हाए मैं इस दिल के समझाने की तरह
तिरे मिज़्गाँ की फ़ौजें बाँध कर सफ़ जब हुईं ख़ड़ियाँ
तिरी बात लावे जो पैग़ाम-बर
हिज्र में उस बुत-ए-काफ़िर के तड़पते हैं पड़े
ग़ज़ालों को तिरी आँखें से कुछ निस्बत नहीं हरगिज़
आई बहार शोरिश-तिफ़लाँ को क्या हुआ
सफ़र दुनिया से करना क्या है 'ताबाँ'