सफ़र दुनिया से करना क्या है 'ताबाँ'
अदम हस्ती से राह-ए-यक-नफ़स है
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मिरा ख़ुर्शीद-रू सब माह-रूयाँ बीच यक्का है
मुझ से बीमार है मिरा ज़ालिम
मरने की मुझ को आप से हैं इज़तिराबियाँ
सोहबत-ए-शैख़ में तू रात को जाया मत कर
आई बहार शोरिश-तिफ़लाँ को क्या हुआ
किसी गुल में नहीं पाने की तू बू-ए-वफ़ा हरगिज़
दुनिया कि नेक ओ बद से मुझे कुछ ख़बर नहीं
तिरी बात लावे जो पैग़ाम-बर
देख उस को ख़्वाब में जब आँख खुल जाती है सुब्ह
'ताबाँ' ज़ि-बस हवा-ए-जुनूँ सर में है मिरे
करता है गर तू बुत-शिकनी तो समझ के कर
मलूँ हों ख़ाक जूँ आईना मुँह पर