मुझ से बीमार है मिरा ज़ालिम
ये सितम किस तरह सहूँ 'ताबाँ'
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आइने को तिरी सूरत से न हो क्यूँ कर हैरत
दर्द-ए-सर है ख़ुमार से मुझ को
एक बुलबुल भी चमन में न रही अब की फ़सल
मैं हो के तिरे ग़म से नाशाद बहुत रोया
तुम्हारे हिज्र में रहता है हम को ग़म मियाँ-साहिब
मोहब्बत तू मत कर दिल उस बेवफ़ा से
सोहबत-ए-शैख़ में तू रात को जाया मत कर
तेरी मख़मूर चश्म ऐ मय-नोश
इन बुतों को तो मिरे साथ मोहब्बत होती
आता नहीं वो यार-ए-सितमगर तो क्या हुआ
है आरज़ू ये जी में उस की गली में जावें
कर क़त्ल मुझे उन ने आलम में बहुत ढूँडा