मुझे आता है रोना ऐसी तन्हाई पे ऐ 'ताबाँ'
न यार अपना न दिल अपना न तन अपना न जाँ अपना
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हमारे मय-कदे में हैं जो कुछ की निय्यतें ज़ाहिर
ज़ाहिद हो और तक़्वा आबिद हो और मुसल्ला
दर्द-ए-सर है ख़ुमार से मुझ को
न थे आशिक़ किसी बे-दाद पर हम जब तलक 'ताबाँ'
आता नहीं वो यार-ए-सितमगर तो क्या हुआ
कब पिलावेगा तू ऐ साक़ी मुझे जाम-ए-शराब
जब तलक रहे जीता चाहिए हँसे बोले
आई बहार शोरिश-तिफ़लाँ को क्या हुआ
तेरी आँखें बड़ी सी प्यारी हैं
कर क़त्ल मुझे उन ने आलम में बहुत ढूँडा
दिल की हसरत न रही दिल में मिरे कुछ बाक़ी
रिंद वाइज़ से क्यूँ कि सरबर हो