जब तलक रहे जीता चाहिए हँसे बोले
आदमी को चुप रहना मौत की निशानी है
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किस किस तरह की दिल में गुज़रती हैं हसरतें
याँ तलक के है तिरे हिज्र में फ़रियाद कि बस
मिरा ख़ुर्शीद-रू सब माह-रूयाँ बीच यक्का है
दर्द-ए-सर है ख़ुमार से मुझ को
किस से पूछूँ हाए मैं इस दिल के समझाने की तरह
अगर तू शोहरा-ए-आफ़ाक़ है तो तेरे बंदों में
ये जो हैं अहल-ए-रिया आज फ़क़ीरों के बीच
मुझे ऐश ओ इशरत की क़ुदरत नहीं है
इन ज़ालिमों को जौर सिवा काम ही नहीं
आता नहीं वो यार-ए-सितमगर तो क्या हुआ
खोता ही नहीं है हवस-ए-मतअम-ओ-मलबस
कई दिन हो गए या-रब नहीं देखा है यार अपना