अगर तू शोहरा-ए-आफ़ाक़ है तो तेरे बंदों में
हमें भी जानता है ख़ूब इक आलम मियाँ-साहिब
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तुम्हारे हिज्र में रहता है हम को ग़म मियाँ-साहिब
किसी का काम दिल इस चर्ख़ से हुआ भी है
है क्या सबब कि यार न आया ख़बर के तईं
नमकीं हर्फ़ है मिरा ये फ़सीह
दूँ सारी ख़ुदाई को एवज़ उन के मैं 'ताबाँ'
कई दिन हो गए या-रब नहीं देखा है यार अपना
किसी गुल में नहीं पाने की तू बू-ए-वफ़ा हरगिज़
तू कौन है ऐ वाइज़ जो मुझ को डराता है
शब को फिरे वो रश्क-ए-माह ख़ाना-ब-ख़ाना कू-ब-कू
इन बुतों को तो मिरे साथ मोहब्बत होती
ज़ाहिद हो और तक़्वा आबिद हो और मुसल्ला
हवा भी इश्क़ की लगने न देता मैं उसे हरगिज़