तू कौन है ऐ वाइज़ जो मुझ को डराता है
मैं की भी हैं तो की हैं अल्लाह की तक़्सीरें
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तू भली बात से ही मेरी ख़फ़ा होता है
आता नहीं वो यार-ए-सितमगर तो क्या हुआ
मुझे आता है रोना ऐसी तन्हाई पे ऐ 'ताबाँ'
गर्म अज़-बस-कि है बाज़ार-ए-बुताँ ऐ ज़ाहिद
ले मेरी ख़बर चश्म मिरे यार की क्यूँ-कर
कई फ़ाक़ों में ईद आई है
है आरज़ू ये जी में उस की गली में जावें
देख क़ासिद को मिरे यार ने पूछा 'ताबाँ'
ऐ मर्द-ए-ख़ुदा हो तू परस्तार बुताँ का
अगर तू शोहरा-ए-आफ़ाक़ है तो तेरे बंदों में
हुए हैं जा के आशिक़ अब तो हम उस शोख़ चंचल के