सोहबत-ए-शैख़ में तू रात को जाया मत कर
वो सिखा देगा तुझे जान नमाज़-ए-माकूस
Wasi Shah
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तू कौन है ऐ वाइज़ जो मुझ को डराता है
सुन फ़स्ल-ए-गुल ख़ुशी हो गुलशन में आइयाँ हैं
तुम्हारे हिज्र में रहता है हम को ग़म मियाँ-साहिब
ज़ाहिद तिरा तो दीन सरासर फ़रेब है
अगर तू शोहरा-ए-आफ़ाक़ है तो तेरे बंदों में
हुए हैं जा के आशिक़ अब तो हम उस शोख़ चंचल के
ईमान ओ दीं से 'ताबाँ' कुछ काम नहीं है हम को
तू मिल उस से हो जिस से दिल तिरा ख़ुश
दिल की हसरत न रही दिल में मिरे कुछ बाक़ी
क़िस्मत में क्या है देखें जीते बचें कि मर जाएँ
न थे आशिक़ किसी बे-दाद पर हम जब तलक 'ताबाँ'
आईना रू-ब-रू रख और अपनी छब दिखाना