आता है मोहतसिब पए-ताज़ीर मय-कशो
पगड़ी को उस की फेंक दो दाढ़ी को लो उखाड़
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यार से अब के गर मिलूँ 'ताबाँ'
दिल की हसरत न रही दिल में मिरे कुछ बाक़ी
ख़ूब-रू जो एक का महबूब नहीं
एक ही जाम को पिला साक़ी
ख़ुदा देवे अगर क़ुदरत मुझे तो ज़िद है ज़ाहिद की
बुरा न मानियो मैं पूछता हूँ ऐ ज़ालिम
ऐसा कहाँ हुबाब कोई चश्म-ए-तर कि हम
है क्या सबब कि यार न आया ख़बर के तईं
किस से पूछूँ हाए मैं इस दिल के समझाने की तरह
महफ़िल के बीच सुन के मिरे सोज़-ए-दिल का हाल
दुनिया कि नेक ओ बद से मुझे कुछ ख़बर नहीं
शब को फिरे वो रश्क-ए-माह ख़ाना-ब-ख़ाना कू-ब-कू