जुदा Poetry (page 5)

हर इक लम्हा हमें हम से जुदा करती हुई सी

सुल्तान अख़्तर

वो तो हर चाहने वाले पे फ़िदा लगता है

सुहैल सानी

जाँ तन का साथ दे न तो दिल ही वफ़ा करे

सुहैल अहमद ज़ैदी

इसी मामूल-ए-रोज़-ओ-शब में जी का दूसरा होना

सुहैल अहमद ज़ैदी

जाने किस की थी ख़ता याद नहीं

सूफ़ी तबस्सुम

किसी में ताब-ए-अलम नहीं है किसी में सोज़-ए-वफ़ा नहीं है

सूफ़ी तबस्सुम

जाने किस की थी ख़ता याद नहीं

सूफ़ी तबस्सुम

मेरे दुख की कोई दवा न करो

सुदर्शन फ़ाकिर

मेरे दुख की कोई दवा न करो

सुदर्शन फ़ाकिर

मैं जुदाई का मुक़र्रर सिलसिला हो जाऊँगा

सुबोध लाल साक़ी

मैं जुदाई का मुक़र्रर सिलसिला हो जाऊँगा

सुबोध लाल साक़ी

कभी जुदा दो बदन हुए तो दिलों पे ये दो अज़ाब उतरे

सोज़ नजीबाबादी

दर-हक़ीक़त रोज़-ओ-शब की तल्ख़ियाँ जाती रहीं

सिया सचदेव

तुझे पा के तुझ से जुदा हो गए हम

सिराज लखनवी

तुझे पा के तुझ से जुदा हो गए हम

सिराज लखनवी

मैं न जाना था कि तू यूँ बे-वफ़ा हो जाएगा

सिराज औरंगाबादी

हम हैं मुश्ताक़-ए-जवाब और तुम हो उल्फ़त सीं बईद

सिराज औरंगाबादी

अग़्यार छोड़ मुझ सें अगर यार होवेगा

सिराज औरंगाबादी

अबस है दूरी का उस के शिकवा बग़ल में अपने वो दिल-रुबा है

श्याम सुंदर लाल बर्क़

रुका तो राज़ खुला कब से अपने घर में था

शुजाअत अली राही

तेरी उल्फ़त में न जाने क्या से क्या हो जाऊँगा

शोला हस्पानवी

मेरे क़दमों पर निगूँ मेरा ही सर है भी तो क्या

शोएब निज़ाम

ख़ुशी में ग़म मिला लेते हैं थोड़ा

शोएब निज़ाम

वो जो मुझ से ख़फ़ा नहीं होता

शिफ़ा कजगावन्वी

होती है लबों पर ख़ामोशी आँखों में मोहब्बत होती है

शेवन बिजनौरी

ज़िंदगी नाम है जिस चीज़ का क्या होती है

शेर सिंह नाज़ देहलवी

न खींचो आशिक़-तिश्ना-जिगर के तीर पहलू से

ज़ौक़

लेते ही दिल जो आशिक़-ए-दिल-सोज़ का चले

ज़ौक़

जुदा हों यार से हम और न हो रक़ीब जुदा

ज़ौक़

गुहर को जौहरी सर्राफ़ ज़र को देखते हैं

ज़ौक़

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