जुदा Poetry (page 7)

मिरी बातों से अब आज़ुर्दा न होना साक़ी

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

हमारी गुफ़्तुगू सब से जुदा है

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

तू जो कहता है बोलता क्या है

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

बंदा अगर जहाँ में बजाए ख़ुदा नहीं

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

पैरहन चुस्त हवा सुस्त खड़ी दीवारें

शहज़ाद अहमद

ज़मीं अपने लहू से आश्ना होने ही वाली है

शहज़ाद अहमद

वो मिरे पास है क्या पास बुलाऊँ उस को

शहज़ाद अहमद

रुख़्सत हुआ तो आँख मिला कर नहीं गया

शहज़ाद अहमद

जो शजर सूख गया है वो हरा कैसे हो

शहज़ाद अहमद

इस भरे शहर में आराम मैं कैसे पाऊँ

शहज़ाद अहमद

देख अब अपने हयूले को फ़ना होते हुए

शहज़ाद अहमद

ये क्या है मोहब्बत में तो ऐसा नहीं होता

शहरयार

वक़्त को क्यूँ भला बुरा कहिए

शहरयार

हम जुदा हो गए आग़ाज़-ए-सफ़र से पहले

शहरयार

आँधियाँ आती थीं लेकिन कभी ऐसा न हुआ

शहरयार

ये क्या है मोहब्बत में तो ऐसा नहीं होता

शहरयार

हँस रहा था मैं बहुत गो वक़्त वो रोने का था

शहरयार

गुज़रे थे हुसैन इब्न-ए-अली रात इधर से

शहरयार

आँधियाँ आती थीं लेकिन कभी ऐसा न हुआ

शहरयार

वो बात

शहराम सर्मदी

ग़ुबार-ए-दर्द में राह-ए-नजात ऐसा ही

शहराम सर्मदी

संग-ज़नों के वास्ते फिर नए रास्तों में है

शाहिदा तबस्सुम

जब घर ही जुदा जुदा रहेगा

शाहिदा हसन

ज़ब्त-ए-ग़म है मिरी पोशाक मिरी इज़्ज़त रख

शाहिद ज़की

मिरे ख़ुदा किसी सूरत उसे मिला मुझ से

शाहिद ज़की

बिछड़ गया था कोई ख़्वाब-ए-दिल-नशीं मुझ से

शाहिद ज़की

पुकारती है जो तुझ को तिरी सदा ही न हो

शाहिद कबीर

लब तक जो न आया था वही हर्फ़-ए-रसा था

शाहिद इश्क़ी

लब तक जो न आया था वही हर्फ़-ए-रसा था

शाहिद इश्क़ी

चेहरों में नज़र आएँ आँखों में उतर जाएँ

शाहीन ग़ाज़ीपुरी

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