आँधियाँ आती थीं लेकिन कभी ऐसा न हुआ
ख़ौफ़ के मारे जुदा शाख़ से पत्ता न हुआ
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'नजमा' के लिए एक नज़्म
ख़्वाब
गर्द को कुदूरतों की धो न पाए हम
नहीं रोक सकोगे जिस्म की इन परवाजों को
नया उफ़क़
निस्बत रहे तुम से सदा हज़रत निज़ामुद्दीन-जी
मेरी ज़मीं
तिरा ख़याल भी तेरी तरह सितमगर है
शहर-ए-जुनूँ में कल तलक जो भी था सब बदल गया
आसमाँ कुछ भी नहीं अब तेरे करने के लिए
पहले नहाई ओस में फिर आँसुओं में रात
अब जिधर देखिए लगता है कि इस दुनिया में