तिरा ख़याल भी तेरी तरह सितमगर है
जहाँ पे चाहिए आना वहीं नहीं आता
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निकला है चाँद शब की पज़ीराई के लिए
ये क़ाफ़िले यादों के कहीं खो गए होते
शिकवा कोई दरिया की रवानी से नहीं है
अब के बरस
नया अमृत
जो चाहती दुनिया है वो मुझ से नहीं होगा
नया उफ़क़
जब भी मिलती है मुझे अजनबी लगती क्यूँ है
इक सिर्फ़ हमीं मय को आँखों से पिलाते हैं
आँधी की ज़द में शम-ए-तमन्ना जलाई जाए
ज़िंदा रहने का ये एहसास
भूली-बिसरी यादों की बारात नहीं आई