तन्हाई की ये कौन सी मंज़िल है रफ़ीक़ो
ता-हद्द-ए-नज़र एक बयाबान सा क्यूँ है
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Gulzar
Wasi Shah
Rahat Indori
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(559) Peoples Rate This
तू कहाँ है तुझ से इक निस्बत थी मेरी ज़ात को
ज़िंदगी जैसी तवक़्क़ो थी नहीं कुछ कम है
हर ख़्वाब के मकाँ को मिस्मार कर दिया है
रात को दिन से मिलाने की हवस थी हम को
जहाँ में होने को ऐ दोस्त यूँ तो सब होगा
हम जुदा हो गए आग़ाज़-ए-सफ़र से पहले
ऐसे हिज्र के मौसम कब कब आते हैं
जहाँ पे तेरी कमी भी न हो सके महसूस
नज़र जो कोई भी तुझ सा हसीं नहीं आता
काग़ज़ की कश्तियाँ भी बहुत काम आएँगी
हँस रहा था मैं बहुत गो वक़्त वो रोने का था
कहाँ तक वक़्त के दरिया को हम ठहरा हुआ देखें