कहाँ तक वक़्त के दरिया को हम ठहरा हुआ देखें
ये हसरत है कि इन आँखों से कुछ होता हुआ देखें
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अजीब काम
अपनी याद में
हज़ार बार मिटी और पाएमाल हुई है
है कोई जो बताए शब के मुसाफ़िरों को
भूली-बिसरी यादों की बारात नहीं आई
खेल का नतीजा
अजीब सानेहा मुझ पर गुज़र गया यारो
घर की तामीर तसव्वुर ही में हो सकती है
ज़बाँ मिली भी तो किस वक़्त बे-ज़बानों को
ख़्वाब का दर बंद है
ला-ज़वाल सुकूत
जो चाहती दुनिया है वो मुझ से नहीं होगा