कहिए तो आसमाँ को ज़मीं पर उतार लाएँ
मुश्किल नहीं है कुछ भी अगर ठान लीजिए
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ला-ज़वाल होने का
जागता हूँ मैं एक अकेला दुनिया सोती है
ज़िंदगी जब भी तिरी बज़्म में लाती है हमें
रात जुदाई की रात
आँधियाँ आती थीं लेकिन कभी ऐसा न हुआ
हवा का ज़ोर ही काफ़ी बहाना होता है
गुम-शुदा
आसमाँ कुछ भी नहीं अब तेरे करने के लिए
सीने में जलन आँखों में तूफ़ान सा क्यूँ है
एक सियासी नज़्म
उम्र का लम्बा हिस्सा कर के दानाई के नाम