सीने में जलन आँखों में तूफ़ान सा क्यूँ है
इस शहर में हर शख़्स परेशान सा क्यूँ है
Ahmad Faraz
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Habib Jalib
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Jaun Eliya
Parveen Shakir
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निस्बत रहे तुम से सदा हज़रत निज़ामुद्दीन-जी
गर्दिश-ए-वक़्त का कितना बड़ा एहसाँ है कि आज
सभी को ग़म है समुंदर के ख़ुश्क होने का
ज़मीं से ता-ब-फ़लक धुँद की ख़ुदाई है
हम जुदा हो गए आग़ाज़-ए-सफ़र से पहले
ये क्या जगह है दोस्तो ये कौन सा दयार है
एक ही मिट्टी से हम दोनों बने हैं लेकिन
तिलिस्म ख़त्म चलो आह-ए-बे-असर का हुआ
कितनी तब्दील हुइ किस लिए तब्दील हुइ
जुस्तुजू जिस की थी उस को तो न पाया हम ने
वो मोड़
ज़वाल की हद