गर्दिश-ए-वक़्त का कितना बड़ा एहसाँ है कि आज
ये ज़मीं चाँद से बेहतर नज़र आती है हमें
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वक़्त को क्यूँ भला बुरा कहिए
आसमाँ कुछ भी नहीं अब तेरे करने के लिए
ज़वाल की हद
हुजूम-ए-दर्द मिला ज़िंदगी अज़ाब हुई
जहाँ मैं होने को ऐ दोस्त यूँ तो सब होगा
कारोबार-ए-शौक़ में बस फ़ाएदा इतना हुआ
दिल में उतरेगी तो पूछेगी जुनूँ कितना है
है आज ये गिला कि अकेला है 'शहरयार'
रात को दिन से मिलाने की हवस थी हम को
है कोई जो बताए शब के मुसाफ़िरों को
कहाँ तक वक़्त के दरिया को हम ठहरा हुआ देखें
वो कौन था