है कोई जो बताए शब के मुसाफ़िरों को
कितना सफ़र हुआ है कितना सफ़र रहा है
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Jaun Eliya
Gulzar
Anwar Masood
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
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सीने में जलन आँखों में तूफ़ान सा क्यूँ है
ज़वाल की हद
नफ़ी से इसबात तक
ऐसे हिज्र के मौसम कब कब आते हैं
ये क़ाफ़िले यादों के कहीं खो गए होते
दिल परेशाँ हो मगर आँख में हैरानी न हो
बुनियाद-ए-जहाँ में कजी क्यूँ है
तिलिस्म ख़त्म चलो आह-ए-बे-असर का हुआ
आँखों को सब की नींद भी दी ख़्वाब भी दिए
सफ़र का नश्शा चढ़ा है तो क्यूँ उतर जाए
ज़िंदा रहने का ये एहसास
उस को किसी के वास्ते बे-ताब देखते