ऐसे हिज्र के मौसम कब कब आते हैं
तेरे अलावा याद हमें सब आते हैं
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अजीब सानेहा मुझ पर गुज़र गया यारो
ज़ख़्मों को रफ़ू कर लें दिल शाद करें फिर से
आँधियाँ आती थीं लेकिन कभी ऐसा न हुआ
तुझ से बिछड़े हैं तो अब किस से मिलाती है हमें
हवा चले वरक़-ए-आरज़ू पलट जाए
ख़ौफ़ का क़हर
फिर सफ़र बे-सम्त बे-मंज़िल हुआ
एक मंज़र
देख दरिया को कि तुग़्यानी में है
वो कौन था वो कहाँ का था क्या हुआ था उसे
नज़राना तेरे हुस्न को क्या दें कि अपने पास
उम्मीद ओ बीम