अजीब सानेहा मुझ पर गुज़र गया यारो
मैं अपने साए से कल रात डर गया यारो
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अब जी के बहलने की है एक यही सूरत
बिछड़े लोगों से मुलाक़ात कभी फिर होगी
दिल रिझा है तुझ पे ऐसा बद-गुमाँ होगा नहीं
पहले सफ़्हे की पहली सुर्ख़ी
शदीद प्यास थी फिर भी छुआ न पानी को
पहले नहाई ओस में फिर आँसुओं में रात
हमारी आँख में नक़्शा ये किस मकान का है
तम्बीह
ज़वाल की हद
जुस्तुजू जिस की थी उस को तो न पाया हम ने
सभी को ग़म है समुंदर के ख़ुश्क होने का
पिछले सफ़र में जो कुछ बीता बीत गया यारो लेकिन