दिल रिझा है तुझ पे ऐसा बद-गुमाँ होगा नहीं
तू नहीं आया तो समझा तू यहाँ होगा नहीं
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नया उफ़क़
पहले नहाई ओस में फिर आँसुओं में रात
एक सियासी नज़्म
रात को दिन से मिलाने की हवस थी हम को
नहीं रोक सकोगे जिस्म की इन परवाजों को
तुझ से बिछड़े हैं तो अब किस से मिलाती है हमें
आख़िरी साँस
हम ने तो कोई बात निकाली नहीं ग़म की
सियाह रात नहीं लेती नाम ढलने का
अजीब सानेहा मुझ पर गुज़र गया यारो
ज़िंदगी जैसी तवक़्क़ो' थी नहीं कुछ कम है
कहाँ तक वक़्त के दरिया को हम ठहरा हुआ देखें