हम ने तो कोई बात निकाली नहीं ग़म की
वो ज़ूद-पशीमान पशीमान सा क्यूँ है
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खेल का नतीजा
पहले सफ़्हे की पहली सुर्ख़ी
कारोबार-ए-शौक़ में बस फ़ाएदा इतना हुआ
ज़मीं से ता-ब-फ़लक धुँद की ख़ुदाई है
या तेरे अलावा भी किसी शय की तलब है
किस फ़िक्र किस ख़याल में खोया हुआ सा है
जहाँ में होने को ऐ दोस्त यूँ तो सब होगा
कहिए तो आसमाँ को ज़मीं पर उतार लाएँ
काग़ज़ की कश्तियाँ भी बहुत काम आएँगी
तू कहाँ है तुझ से इक निस्बत थी मेरी ज़ात को
मुझ को ले डूबा तिरा शहर में यकता होना
सभी को ग़म है समुंदर के ख़ुश्क होने का