जहाँ में होने को ऐ दोस्त यूँ तो सब होगा
तिरे लबों पे मिरे लब हों ऐसा कब होगा
Rahat Indori
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Jaun Eliya
Javed Akhtar
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ये क्या है मोहब्बत में तो ऐसा नहीं होता
हज़ार बार मिटी और पाएमाल हुई है
नहीं है मुझ से तअ'ल्लुक़ कोई तो ऐसा क्यूँ
शाम होते ही खुली सड़कों की याद आती है
रात को दिन से मिलाने की हवस थी हम को
उम्र का लम्बा हिस्सा कर के दानाई के नाम
रात जुदाई की रात
भटक गया कि मंज़िलों का वो सुराग़ पा गया
दरिया-ए-ख़ूँ
रतजगों का ज़वाल
तुझ से बिछड़े हैं तो अब किस से मिलाती है हमें
कहिए तो आसमाँ को ज़मीं पर उतार लाएँ