इन दिनों मैं भी हूँ कुछ कार-ए-जहाँ में मसरूफ़
बात तुझ में भी नहीं रह गई पहले वाली
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घर की तामीर तसव्वुर ही में हो सकती है
खेल का नतीजा
एतराफ़
एक ही मिट्टी से हम दोनों बने हैं लेकिन
ज़िंदगी जैसी तवक़्क़ो थी नहीं कुछ कम है
कितनी तब्दील हुइ किस लिए तब्दील हुइ
हवा का ज़ोर ही काफ़ी बहाना होता है
ख़्वाब
शदीद प्यास थी फिर भी छुआ न पानी को
अजीब सानेहा मुझ पर गुज़र गया यारो
दिल में उतरेगी तो पूछेगी जुनूँ कितना है
आँखों को सब की नींद भी दी ख़्वाब भी दिए