जान-बूझ कर समझ कर मैं ने भुला दिया
हर वो क़िस्सा जो दिल को बहलाने वाला था
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एक और साल गिरह
जुदा हुए वो लोग कि जिन को साथ में आना था
सियाह रात नहीं लेती नाम ढलने का
मौत
एक लम्हे से दूसरे लम्हे तक
शिकवा कोई दरिया की रवानी से नहीं है
आँधी की ज़द में शम-ए-तमन्ना जलाई जाए
गर्दिश-ए-वक़्त का कितना बड़ा एहसाँ है कि आज
उस को किसी के वास्ते बे-ताब देखते
जिस्म की कश्ती में आ
मोम के जिस्मों वाली इस मख़्लूक़ को रुस्वा मत करना
क्या कोई नई बात नज़र आती है हम में