क्या कोई नई बात नज़र आती है हम में
आईना हमें देख के हैरान सा क्यूँ है
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अब जिधर देखिए लगता है कि इस दुनिया में
ज़िंदगी जब भी तिरी बज़्म में लाती है हमें
रात को दिन से मिलाने की हवस थी हम को
न ख़ुश-गुमान हो इस पर तू ऐ दिल-ए-सादा
नहीं रोक सकोगे जिस्म की इन परवाजों को
आहट जो सुनाई दी है हिज्र की शब की है
फ़ज़ा-ए-मय-कदा बे-रंग लग रही है मुझे
है आज ये गिला कि अकेला है 'शहरयार'
ज़मीं से ता-ब-फ़लक धुँद की ख़ुदाई है
आँधी की ज़द में शम-ए-तमन्ना जलाई जाए
तेरे वा'दे को कभी झूट नहीं समझूँगा
अजीब सानेहा मुझ पर गुज़र गया यारो