क्यूँ आज उस का ज़िक्र मुझे ख़ुश न कर सका
क्यूँ आज उस का नाम मिरा दिल दुखा गया
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पहले नहाई ओस में फिर आँसुओं में रात
या तेरे अलावा भी किसी शय की तलब है
दिल में रखता है न पलकों पे बिठाता है मुझे
आँधी की ज़द में शम-ए-तमन्ना जलाई जाए
जागता हूँ मैं एक अकेला दुनिया सोती है
कारोबार-ए-शौक़ में बस फ़ाएदा इतना हुआ
वो कौन था वो कहाँ का था क्या हुआ था उसे
चल चल के थक गया है कि मंज़िल नहीं कोई
आँख की ये एक हसरत थी कि बस पूरी हुई
ये क्या जगह है दोस्तो ये कौन सा दयार है
हम जुदा हो गए आग़ाज़-ए-सफ़र से पहले