लोग सर फोड़ कर भी देख चुके
ग़म की दीवार टूटती ही नहीं
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
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Parveen Shakir
Jaun Eliya
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कच्चे रस्तों से
हम जुदा हो गए आग़ाज़-ए-सफ़र से पहले
क्या कोई नई बात नज़र आती है हम में
काग़ज़ की कश्तियाँ भी बहुत काम आएँगी
सभी को ग़म है समुंदर के ख़ुश्क होने का
चलो तुम को....
मा'बद-ए-ज़ीस्त में बुत की मिसाल जड़े होंगे
जागता हूँ मैं एक अकेला दुनिया सोती है
तिलिस्म ख़त्म चलो आह-ए-बे-असर का हुआ
दिल चीज़ क्या है आप मिरी जान लीजिए
क्यूँ आज उस का ज़िक्र मुझे ख़ुश न कर सका
चल चल के थक गया है कि मंज़िल नहीं कोई