मैं अकेला सही मगर कब तक
नंगी परछाइयों के बीच रहूँ
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Rahat Indori
Javed Akhtar
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(413) Peoples Rate This
आँखों को सब की नींद भी दी ख़्वाब भी दिए
कितनी तब्दील हुइ किस लिए तब्दील हुइ
कहने को तो हर बात कही तेरे मुक़ाबिल
वापसी
नहीं है मुझ से तअ'ल्लुक़ कोई तो ऐसा क्यूँ
अब जिधर देखिए लगता है कि इस दुनिया में
पल भर में कैसे लोग बदल जाते हैं यहाँ
शम-ए-दिल शम-ए-तमन्ना न जला मान भी जा
जहाँ मैं होने को ऐ दोस्त यूँ तो सब होगा
फ़ज़ा-ए-मय-कदा बे-रंग लग रही है मुझे
आसमाँ कुछ भी नहीं अब तेरे करने के लिए
मुझ को ले डूबा तिरा शहर में यकता होना