कितनी तब्दील हुइ किस लिए तब्दील हुइ
जानना चाहो तो इन आँखों से दुनिया देखो
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अब जिधर देखिए लगता है कि इस दुनिया में
तुझे भूल गया कभी याद नहीं करता तुझ को
वक़्त को क्यूँ भला बुरा कहिए
शिकवा कोई दरिया की रवानी से नहीं है
नफ़ी से इसबात तक
दिल रिझा है तुझ पे ऐसा बद-गुमाँ होगा नहीं
जुदा हुए वो लोग कि जिन को साथ में आना था
आँख की ये एक हसरत थी कि बस पूरी हुई
दयार-ए-दिल न रहा बज़्म-ए-दोस्ताँ न रही
ये क़ाफ़िले यादों के कहीं खो गए होते
ज़िंदा रहने का ये एहसास
कहाँ तक वक़्त के दरिया को हम ठहरा हुआ देखें