तुझे भूल गया कभी याद नहीं करता तुझ को
जो बात बहुत पहले करनी थी अब की है
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दिल रिझा है तुझ पे ऐसा बद-गुमाँ होगा नहीं
तन्हाई की ये कौन सी मंज़िल है रफ़ीक़ो
हमारी आँख में नक़्शा ये किस मकान का है
हवा चले वरक़-ए-आरज़ू पलट जाए
ज़ख़्मों को रफ़ू कर लें दिल शाद करें फिर से
उस को किसी के वास्ते बे-ताब देखते
गर्द को कुदूरतों की धो न पाए हम
ये क़ाफ़िले यादों के कहीं खो गए होते
ऐसे हिज्र के मौसम कब कब आते हैं
वापसी
तेरे सिवा भी कोई मुझे याद आने वाला था