आँख की ये एक हसरत थी कि बस पूरी हुई
आँसुओं में भीग जाने की हवस पूरी हुई
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उम्मीद से कम चश्म-ए-ख़रीदार में आए
साए
सभी को ग़म है समुंदर के ख़ुश्क होने का
तुझ से बिछड़े हैं तो अब किस से मिलाती है हमें
किस फ़िक्र किस ख़याल में खोया हुआ सा है
फिर सफ़र बे-सम्त बे-मंज़िल हुआ
जहाँ में होने को ऐ दोस्त यूँ तो सब होगा
तेरे वादे को कभी झूट नहीं समझूँगा
कहाँ तक वक़्त के दरिया को हम ठहरा हुआ देखें
शदीद प्यास थी फिर भी छुआ न पानी को
ज़वाल की हद
आँधी की ज़द में शम-ए-तमन्ना जलाई जाए