चल चल के थक गया है कि मंज़िल नहीं कोई
क्यूँ वक़्त एक मोड़ पे ठहरा हुआ सा है
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Rahat Indori
Allama Iqbal
Habib Jalib
Javed Akhtar
Gulzar
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(407) Peoples Rate This
ये क़ाफ़िले यादों के कहीं खो गए होते
मेरी ज़मीं
फिर सफ़र बे-सम्त बे-मंज़िल हुआ
ज़िंदा रहने का ये एहसास
नया उफ़क़
पहले नहाई ओस में फिर आँसुओं में रात
किस फ़िक्र किस ख़याल में खोया हुआ सा है
हर ख़्वाब के मकाँ को मिस्मार कर दिया है
बे-नाम से इक ख़ौफ़ से दिल क्यूँ है परेशाँ
ख़्वाब का दर बंद है
ये जगह अहल-ए-जुनूँ अब नहीं रहने वाली
वो मोड़