पहले नहाई ओस में फिर आँसुओं में रात
यूँ बूँद बूँद उतरी हमारे घरों में रात
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ये क़ाफ़िले यादों के कहीं खो गए होते
कच्चे रस्तों से
फ़ैसले की घड़ी
तुझ से बिछड़े हैं तो अब किस से मिलाती है हमें
तिरा ख़याल भी तेरी तरह सितमगर है
जो चाहती दुनिया है वो मुझ से नहीं होगा
कहाँ तक वक़्त के दरिया को हम ठहरा हुआ देखें
अब जी के बहलने की है एक यही सूरत
गुलाब टहनी से टूटा ज़मीन पर न गिरा
एक नज़्म
तू कहाँ है तुझ से इक निस्बत थी मेरी ज़ात को