गुलाब टहनी से टूटा ज़मीन पर न गिरा
करिश्मे तेज़ हवा के समझ से बाहर हैं
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किस फ़िक्र किस ख़याल में खोया हुआ सा है
घर की तामीर तसव्वुर ही में हो सकती है
पिछले सफ़र में जो कुछ बीता बीत गया यारो लेकिन
जहाँ पे तेरी कमी भी न हो सके महसूस
ये क़ाफ़िले यादों के कहीं खो गए होते
आँधी की ज़द में शम-ए-तमन्ना जलाई जाए
जागता हूँ मैं एक अकेला दुनिया सोती है
शहर-ए-जुनूँ में कल तलक जो भी था सब बदल गया
ज़वाल की हद
हम ख़ुश हैं हमें धूप विरासत में मिली है
जान-बूझ कर समझ कर मैं ने भुला दिया
जम्अ करते रहे जो अपने को ज़र्रा ज़र्रा