घर की तामीर तसव्वुर ही में हो सकती है
अपने नक़्शे के मुताबिक़ ये ज़मीं कुछ कम है
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वापसी
नया अमृत
शिकवा कोई दरिया की रवानी से नहीं है
उस को किसी के वास्ते बे-ताब देखते
ख़्वाब का दर बंद है
देखने के लिए इक चेहरा बहुत होता है
शम-ए-दिल शम-ए-तमन्ना न जला मान भी जा
दयार-ए-दिल न रहा बज़्म-ए-दोस्ताँ न रही
नज़र जो कोई भी तुझ सा हसीं नहीं आता
किस फ़िक्र किस ख़याल में खोया हुआ सा है
सैगंधी
देख दरिया को कि तुग़्यानी में है