देखने के लिए इक चेहरा बहुत होता है
आँख जब तक है तुझे सिर्फ़ तुझे देखूँगा
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ख़ौफ़ का क़हर
वो मोड़
ज़वाल की हद
फ़ैसले की घड़ी
ये जब है कि इक ख़्वाब से रिश्ता है हमारा
अजीब सानेहा मुझ पर गुज़र गया यारो
ये क्या जगह है दोस्तो ये कौन सा दयार है
नफ़ी से इसबात तक
हर तरफ़ अपने को बिखरा पाओगे
क्यूँ आज उस का ज़िक्र मुझे ख़ुश न कर सका
जब भी मिलती है मुझे अजनबी लगती क्यूँ है