जब भी मिलती है मुझे अजनबी लगती क्यूँ है
ज़िंदगी रोज़ नए रंग बदलती क्यूँ है
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Gulzar
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(446) Peoples Rate This
आरज़ू
सैगंधी
ज़िंदगी जैसी तवक़्क़ो थी नहीं कुछ कम है
काग़ज़ की कश्तियाँ भी बहुत काम आएँगी
दयार-ए-दिल न रहा बज़्म-ए-दोस्ताँ न रही
दिल परेशाँ हो मगर आँख में हैरानी न हो
कब समाँ देखेंगे हम ज़ख़्मों के भर जाने का
किस किस तरह से मुझ को न रुस्वा किया गया
जागता हूँ मैं एक अकेला दुनिया सोती है
कोई नया मकीन नहीं आया तो हैरत क्या
ये जब है कि इक ख़्वाब से रिश्ता है हमारा
जो चाहती दुनिया है वो मुझ से नहीं होगा