सोते सोते चौंक उठी जब पलकों की झंकार
आबादी पर वीराने का होने लगा गुमान
वहशत ने पर खोल दिए और धुँदले हुए निशान
हर लम्हे की आहट बन गई साँपों की फुन्कार
ऐसे वक़्त में दिल को हमेशा सूझा एक उपाए
काश कोई बे-ख़्वाब दरीचा चुपके से खुल जाए
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उम्मीद से कम चश्म-ए-ख़रीदार में आए
इक सिर्फ़ हमीं मय को आँखों से पिलाते हैं
गर्द को कुदूरतों की धो न पाए हम
अजीब काम
जागता हूँ मैं एक अकेला दुनिया सोती है
बिछड़े लोगों से मुलाक़ात कभी फिर होगी
तू कहाँ है तुझ से इक निस्बत थी मेरी ज़ात को
कहाँ तक वक़्त के दरिया को हम ठहरा हुआ देखें
निकला है चाँद शब की पज़ीराई के लिए
शदीद प्यास थी फिर भी छुआ न पानी को
पिछले सफ़र में जो कुछ बीता बीत गया यारो लेकिन
रात जुदाई की रात