बिछड़े लोगों से मुलाक़ात कभी फिर होगी
दिल में उम्मीद तो काफ़ी है यक़ीं कुछ कम है
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
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Mir Taqi Mir
Gulzar
Habib Jalib
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पहले सफ़्हे की पहली सुर्ख़ी
एतराफ़
ज़िंदगी जैसी तवक़्क़ो' थी नहीं कुछ कम है
खेल का नतीजा
आरज़ू
बे-ताब हैं और इश्क़ का दावा नहीं हम को
मिरे सूरज आ! मिरे जिस्म पे अपना साया कर
ये इक शजर कि जिस पे न काँटा न फूल है
हर तरफ़ अपने को बिखरा पाओगे
ज़िंदगी जैसी तवक़्क़ो थी नहीं कुछ कम है
तिरा ख़याल भी तेरी तरह सितमगर है
एक और साल गिरह