मिरे सूरज आ! मिरे जिस्म पे अपना साया कर
बड़ी तेज़ हवा है सर्दी आज ग़ज़ब की है
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अहद-ए-हाज़िर की दिल-रुबा मख़्लूक़
तन्हाई
मा'बद-ए-ज़ीस्त में बुत की मिसाल जड़े होंगे
एक ही मिट्टी से हम दोनों बने हैं लेकिन
वापसी
कहाँ तक वक़्त के दरिया को हम ठहरा हुआ देखें
उम्मीद से कम चश्म-ए-ख़रीदार में आए
फिर सफ़र बे-सम्त बे-मंज़िल हुआ
ज़िंदा रहने का ये एहसास
क्या कोई नई बात नज़र आती है हम में
ज़िंदगी जैसी तवक़्क़ो' थी नहीं कुछ कम है
मुझ को मिलना है 'वहीद-अख़्तर' से