अँधेरी रात की इस रहगुज़र पर
हमारे साथ कोई और भी था
उफ़ुक़ की सम्त वो भी तक रहा था
उसे भी कुछ दिखाई दे रहा था
उसे भी कुछ सुनाई दे रहा था
मगर ये रात ढलने पर हुआ क्या
हमारे साथ अब कोई नहीं है
Wasi Shah
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Anwar Masood
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
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एक और साल गिरह
साए
उस को किसी के वास्ते बे-ताब देखते
वापसी
कौन सी बात है जो उस में नहीं
पहले सफ़्हे की पहली सुर्ख़ी
मुझ को मिलना है 'वहीद-अख़्तर' से
ये इक शजर कि जिस पे न काँटा न फूल है
सभी को ग़म है समुंदर के ख़ुश्क होने का
रात जुदाई की रात
फिर सफ़र बे-सम्त बे-मंज़िल हुआ
नहीं रोक सकोगे जिस्म की इन परवाजों को