कौन सी बात है जो उस में नहीं
उस को देखे मिरी नज़र से कोई
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नया अमृत
मौत
आहट जो सुनाई दी है हिज्र की शब की है
ज़िंदा रहने का ये एहसास
ज़ख़्मों को रफ़ू कर लें दिल शाद करें फिर से
नहीं है मुझ से तअ'ल्लुक़ कोई तो ऐसा क्यूँ
अहद-ए-हाज़िर की दिल-रुबा मख़्लूक़
पहले सफ़्हे की पहली सुर्ख़ी
कितनी तब्दील हुइ किस लिए तब्दील हुइ
एक और मौत
मैं अकेला सही मगर कब तक
दयार-ए-दिल न रहा बज़्म-ए-दोस्ताँ न रही