ख़जिल चराग़ों से अहल-ए-वफ़ा को होना है
कि सरफ़राज़ यहाँ फिर हवा को होना है
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Parveen Shakir
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(413) Peoples Rate This
मेरी ज़मीं
आँख की ये एक हसरत थी कि बस पूरी हुई
हवा का ज़ोर ही काफ़ी बहाना होता है
रात जुदाई की रात
वो बेवफ़ा है हमेशा ही दिल दुखाता है
जब भी मिलती है मुझे अजनबी लगती क्यूँ है
चुपके से इधर आ जाओ
ऐसे हिज्र के मौसम कब कब आते हैं
एक लम्हे से दूसरे लम्हे तक
अक्स-ए-याद-ए-यार को धुँदला किया है
जो होने वाला है अब उस की फ़िक्र क्या कीजे
बहते दरियाओं में पानी की कमी देखना है