एक आहट अभी दरवाज़े पे लहराई थी
एक सरगोशी अभी कानों से टकराई थी
एक ख़ुश्बू ने अभी जिस्म को सहलाया था
एक साया अभी कमरे में मिरे आया था
और फिर नींद की दीवार के गिरने की सदा
और फिर चारों तरफ़ तेज़ हवा!!
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सारी दुनिया के मसाइल यूँ मुझे दरपेश हैं
लोग सर फोड़ कर भी देख चुके
तुझ से बिछड़े हैं तो अब किस से मिलाती है हमें
मोम के जिस्मों वाली इस मख़्लूक़ को रुस्वा मत करना
उम्र का लम्बा हिस्सा कर के दानाई के नाम
जान-बूझ कर समझ कर मैं ने भुला दिया
कहिए तो आसमाँ को ज़मीं पर उतार लाएँ
हम ने तो कोई बात निकाली नहीं ग़म की
आँख की ये एक हसरत थी कि बस पूरी हुई
पहले सफ़्हे की पहली सुर्ख़ी
शाम होते ही खुली सड़कों की याद आती है
नज़र जो कोई भी तुझ सा हसीं नहीं आता